जीवाणु किसे कहते हैं खोज और रोग What is bacteria discovery and diseases

जीवाणु किसे कहते हैं खोज और रोग What is bacteria discovery and diseases

हैलो दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है। इस लेख जीवाणु किसे कहते हैं खोज प्रकार और रोग (what is bacteria discovery and disease) में। दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप जीवाणु किसे कहते हैं,

जीवाणु की खोज, के साथ जीवाणुओ के प्रकार तथा जीवाणुओ से होने वाले रोग के बारे में पड़ेंगे। तो आइये दोस्तों शुरू करते है, यह लेख जीवाणु किसे कहते हैं खोज प्रकार और रोग:-

  1. इसे भी पढ़े:- प्रयोगशाला विधि क्या है इसके गुण और दोष

जीवाणु किसे कहते हैं what is bacteria 

जीवाणु एक कोशिकीय (Unicellular) या बहूकोशिकीय (Multicellular) वे सूक्ष्मतम प्रोकैरियोटिक जीव होते हैं, जिन्हे सूक्ष्मदर्शी की सहायता के बिना नहीं देखा जा सकता।

क्योंकि इनका आकार मिलीमीटर (Milimeter) में होता है। जीवाणु गोलाकार छड़ के आकार के होते हैं, तथा सर्वत्र पाए जाते हैं।

कुछ जीवाणु प्रकाश संश्लेषण (Photosynthetic) क्रिया को भी प्रदर्शित करते हैं, किंतु जीवाणु पादप जगत के अंतर्गत नहीं आते।

जीवाणु में पाई जाने वाली कोशिका भित्ति (Cell wall) का रासायनिक संगठन पौधों में उपस्थित कोशिका भित्ति के रासायनिक संगठन से अलग होता है।

कुछ जीवाणुओं में प्रकाश संश्लेषण जीवाणु में उपस्थित बैक्टीरियोक्लोरोफिल (Bacteriochlorophyl) के कारण होता है, जो पौधों में क्लोरोफिल (chlorophyl) के संगठन से भिन्न होता है।

जीवाणु किसे कहते हैं खोज और रोग।


जीवाणु की खोज Discovery of bacteria

जीवाणु की खोज 16 वीं सदी में हुई थी, जब एक वैज्ञानिक जिनका नाम एंटोनीवॉन ल्यूवेनहॉक (Antonyvon leuwenhoek) था। उन्होंने अपना सूक्ष्मदर्शी बनाया।

और उस सूक्ष्मदर्शी के द्वारा ही उन्होंने दाँत की खुरचन का निरिक्षण किया तो उन्हें उसमें छोटे - छोटे जीव दिखाई दिए, जिनको ल्यूवेनहॉक ने सूक्ष्मजीव कहा।

किंतु वास्तव में वह जीवाणु ही थे, इसलिए ल्यूवेनहॉक को जीवाणु विज्ञान का पिता (Father of bacteriology) कहा जाता है। उन्होंने छोटे-छोटे सूक्ष्मजीव अर्थात जीवाणुओं की खोज (Discovery of Bacteria) 1683 ईस्वी में की थी।

किंतु इन छोटे-छोटे जीवो को जीवाणु (Bacteria) नाम 1829 में एहरेनवर्ग (Ehrenvarg) ने उनका अध्ययन करने के पश्चात दिया।

इसके बाद जीवाणु पर अन्य वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया और विभिन्न प्रकार के विचार प्रस्तुत किये। लुई पाश्चर (Louis Pasteur) ने यह बताया, कि जीवाणुओं के द्वारा ही किण्वन प्रक्रिया होती है।

रॉबर्ट कोच (Robert Koch) नामक वैज्ञानिक ने एथ्रेक्स (Anthrax) नामक जीवाणु द्वारा होने वाले रोग का पता 1882 में लगाया। उन्होंने बताया कि एंथ्रेक्स जीवाणु द्वारा फैलने वाला एक रोग है, जो अधिकतर जानवरों में होता है।

इसके बाद रॉबर्ट कोच ने जीवाणुओं का कृत्रिम संवर्धन भी किया। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि मनुष्यों में तपेदिक, (Tuberculosis) हैजा (Cholera) आदि रोग भी जीवाणुओ के कारण ही फैलते हैं।

जीवाणु से होने वाले रोग मनुष्य के साथ जानवरों के लिए जीवाणुओं की लाभ हानि आदि सभी का अध्ययन जीव विज्ञान की एक शाखा जीवाणु विज्ञान (Bacteriology) के अंतर्गत किया जाता है।

जीवाणु की संरचना Structure of bacteria

जीवाणु अधिकतर एक कोशिकीय (Unicelluler) प्रोकैरियोटिक जीव होते है, इसलिए उनकी शारीरिक संरचना बहुत ही सरल होती है। जीवाणु का पूरा शरीर एक कोशिका के द्वारा निर्मित होता है।

शरीर चारों ओर से पादप कोशिका की तरह कोशिका भित्ति के द्वारा घिरा रहता है। कोशिका भित्ति के नीचे ही कोशिका झिल्ली होती है।

इनकी कोशिका झिल्ली प्रोटीन (Protien) और फास्फोलिपिड से निर्मित होती है। जीवाणु कोशिका के अंदर स्पष्ट केंद्रक तथा कोशिका झिल्ली युक्त कोशिकांग अनुपस्थित होते हैं अर्थात कोशिकांग

जैसे - माइटोकॉन्ड्रिया,गॉलजी बॉडी एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम आदि अविकसित कोशिका द्रव में घुलित अवस्था में ही होते हैं।

जीवाणु कोशिका में केंद्रकभित्ति और क्रोमोसोम का भी आभाव होता है। इसमें एक प्राथमिक केंद्रक पाया जाता है, जिसे न्यूक्लियोटाइड कहते हैं।

जीवाणु कोशिका में कोशिका भित्ति के चारों ओर छोटे छोटे रोम पाए जाते हैं, जिन्हें सीलिया कहा जाता है। सीलिया के द्वारा ही जीवाणु कोशिका को प्रचलन, पोषण और प्रजनन में सहायता मिलती है।

जीवाणुओं के प्रकार Type of bacteria

आकृति के आधार पर जीवाणुओं को निम्न दो प्रकारों में बांटा गया है:-

  1. शलाकवत (Bacillus) - यह जीवाणु या तो छड़ के आकार के होते हैं, या फिर बेलनाकार आकृति के होते हैं, उदाहरण :- बेसिलस एथ्रेसिस
  2. गोलाकार (Coccus) - जिवाणु आकृति में सबसे छोटे जीवाणु होते हैं, जिनकी आकृति गोल होती है।

कोशिकाओं (Cells) की संख्या के आधार पर जीवाणु निम्न प्रकार के होते है :

  1. माइक्रोकोकाई (Micrococci) - वे जीवाणु जो एक कोशिका के रूप में होते हैं, उन्हें माइक्रोकोकाई कहा जाता है। जैसे:- माइक्रोकस
  2. डिप्लोकोकाई (Diplococci) - यह जीवाणु दो- दो कोशिकाओं के समूह में होते हैं, इसलिए इन्हें डिप्लोकोकाई जीवाणु कहा जाता है। जैसे :- डिप्लोकोकस न्यूमोनी
  3. स्ट्रैप्टोकोकाई (Streptococci) - जो जीवाणु अनेक कोशिकाओं के समूह में होते हैं,उन जीवाणुओं को स्ट्रैप्टोकोकाई के नाम से जाना जाता है। उदाहरण:- स्ट्रैप्टॉकोकस लैक्टिस
  4. सारसिनी (Sarcini) - वे जीवाणु जो 8, 64, या 128 के घनाकृतिक पैकेट के रूप में होते हैं, उन्हें सारसिनी जीवाणु कहा जाता है। उदाहरण :- सारसिना

जीवाणु के सामान्य लक्षण Samanya lakshan of bacteria 

  1. सभी प्रकार के जीवाणु सरलतम जीव होते हैं।
  2. जीवाणु प्रायः सभी स्थानों पर पाए जाते हैं।
  3. जीवाणु एक कोशिकीय प्रोकैरियोटिक जीव होते हैं, जो एकल और समूह में भी रहते है।
  4. जीवाणुओं का आकार लगभग 2 से 10 माइक्रोन तक हो सकता है।
  5. जीवाणु की कोशिका भित्ति मोटी काइटिन नामक प्रोटीन से बनी होती है।
  6. जीवाणु परजीवी मृतोपजीवी और सहजीवी प्रकृति भी प्रदर्शित करते हैं।
  7. जीवाणुओं में झिल्ली युक्त कोशिकांग तथा स्पष्ट केंद्रक भी नहीं होता है।
  8. जीवाणु में जनन विखंडन के द्वारा होता है।
  9. जीवाणुओ में प्रचलन के लिए छोटे-छोटे रोम होते हैं, जिन्हें सीलिया कहते हैं।

जीवाणुओं में पोषण Nutrition in bacteria

जीवाणुओं में पोषण दो प्रकार का होता है। स्वपोषी पोषण और विषमपोषी पोषण

1. स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition)

स्वपोषी पोषण के अंतर्गत वे जीवाणु आते हैं, जो अपने भोजन का निर्माण स्वयं कर लेते हैं, अर्थात यह अपने भोजन के लिए अन्य किन्ही जीवो पर आश्रित नहीं होते। ऐसे जीवाणु स्वपोषी जीवाणु और पोषण स्वपोषी पोषण कहलाता है, जो दो प्रकार से होता हैं:- 

  1. प्रकाश संश्लेषी (Photosynthetic)- वे जीवाणु जो प्रकाश की उपस्थिति में बैक्टीरियोक्लोरोफिल के द्वारा भोजन का स्वयं निर्माण कर लेते हैं उन्हें प्रकाश संश्लेषी जीवाणु कहते है। उदाहरण:- क्रॉमेटीएम 
  2. रसायन संश्लेषण (Chemical synthesis) - इस प्रकार के पोषण में जीवाणु रसायन, अकार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं। उदाहरण नाइट्रोबैक्टर

2. विषमपोषी पोषण (Heterotrophic nutrition)

विषमपोषी पोषण वह पोषण है, जिसमें जीवाणु अपने भोजन के लिए अन्य जीव धारियों पर निर्भर करते हैं, कियोकि यह जीवाणु अपने भोजन का निर्माण स्वयं नहीं कर पाते ऐसा पोषण विषमपोषी पोषण कहलाता है, जो निम्न प्रकार का होता है:- 

  1. परजीवी (Parasite) - इस प्रकार के पोषण में जीवाणु अन्य जीवो पर आश्रित रहकर भोजन प्राप्त करते हैं, इस प्रकार के पोषण में जो जीवाणु होते हैं, वे जीवाणु रोग कारक होते हैं। उदाहरण:- माइकोबैक्टेरियम
  2. सहजीवी (Symbiotic) - सहजीवी पोषण में जीवाणु किसी अन्य प्राणी के शरीर में रहकर भोजन प्राप्त करते हैं। लेकिन यह उस जीव को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होने देते। उदाहरण:- राइबोजियम
  3. मृतोपजीवी (Mritopjeevi) - मृतोपजीवी पोषण में जीवाणु मृत अकार्बनिक और कार्बनिक पदार्थों से भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे:- लैक्टोबैसिलस

जीवाणुओं से लाभ Benefits from bacteria

प्रकृति में जितनी भी वस्तुएँ है, वह किसी ना किसी प्रकार से मनुष्य तथा जीव जंतुओ के लिए हानिकारक होती है, और लाभदायक भी इसी प्रकार से कुछ जीवाणु भी लाभदायक होते है, जो निम्नप्रकार से है:-

  1. राइबोजियम जीवाणु - राइबोजियम जीवाणु भूमि की उर्वरता बढ़ाने में असरकारक होते हैं। यह जीवाणु सभी प्रकार की दलहनी फसलों की जड़ों में पाया जाता है, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य करता है। यह जीवाणु वायुमंडल से नाइट्रोजन ग्रहण करता है और उसे नाइट्रेट में परिवर्तित कर देता है, जिससे मृदा की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती है।
  2. लैक्टोबैसिलस जीवाणु- लैक्टोबैसिलस जीवाणुओं के द्वारा ही दूध से दही निर्मित होता है। यह जीवाणु दूध में उपस्थित छोटी-छोटी कैसीन नामक प्रोटीन को एकत्रित करता है और उन्हें दही में परिवर्तित कर देता है।
  3. एसीटोबेक्टर एसेटी जीवाणु- यह जीवाणु सिरके के निर्माण में सहायक होता है। एसीटोबेक्टर एसेटी जीवाणु शर्करा के धोल को किण्वन करता है, जिससे सिरके का निर्माण होता है।
  4. बेसिलस मेगाथेनियम माइकोकोकस जीवाणु- यह जीवाणु तंबाकू की पत्तियों में पाया जाने वाला जीवाणु है, यह तंबाकू में स्वाद और गंध को बढ़ाता है।
  5. माइकोकोकस कोंडिसेंस जीवाणु - इस जीवाणु का उपयोग चाय की पत्तियों पर तंबाकू की क्रिया कराने के लिए क्यूरिंग (Curing) में किया जाता है।
  6. बैक्टिरियम लेक्टिसाई एसिडाई और लेक्टिसाई जीवाणु - यह दोनों जीवाणु दूध में पाए जाने वाले जीवाणु है। उनका कार्य दूध में पाई जाने वाली शर्करा लेक्टोंस का किण्वन क्रिया के द्वारा लैक्टिक अम्ल के निर्माण में सहायता करना होता है।

प्रतिजैविक औषधियों के निर्माण में भी जीवाणुओ का उपयोग होता है। कुछ प्रतिजैविक और जीवाणुओं के नाम निम्न प्रकार से हैं:-

  1. स्ट्रैप्टॉकोकस ओरोफेसीइंसी - इस जीवाणु के द्वारा ओरोमाइसीन प्रतिजैविक का निर्माण किया जाता है।
  2. बेसिलस सबतिलिस - बेसिलस सबतिलिस जीवाणु से बेसीट्रेसीन नामक प्रतिजैविक का निर्माण होता है।
  3. स्ट्रैप्टॉकोकस वेनेजुएली - स्ट्रैप्टॉकोकस वेनेजुएली नामक जीवाणु से क्लोरोमाइसीटिन प्रतिजैविक प्राप्त किया जाता है।
  4. स्ट्रैप्टॉकोकस ग्रीसस - इस जीवाणु के द्वारा स्ट्रैप्टॉमाइसीन प्रतिजैविक का निर्माण किया जाता है
  5. स्ट्रैप्टॉकोकस रिमोसस - स्ट्रैप्टॉकोकस रिमोसस नामक जीवाणु के द्वारा टेरामाइसिन नामक प्रतिजैविक का निर्माण होता है।
  6. सर्पिलाकृतिक जीवाणु - वह जीवाणु जिनकी आकृति coiled या फिर spiral होती है। उदाहरण:- स्पाईरिलम रुप्रेम
  7. कोमा जीवाणु - कोमा जीवाणु अंग्रेजी के चिन्ह कोमा के अनुसार और आकार का होता है। उदाहरण:- ब्रिबियो कोमा

जीवाणुओं से हानि Damage from bacteria

जीवाणुओ से हानि मनुष्य के साथ ही समस्त जीव-जंतुओं तथा वनस्पतियों को भी होती है। जीवाणुओं से हानि को हम निम्न प्रकार से समझते हैं:-

  1. कुछ जीवाणु ऐसे होते हैं, जो भोजन को विषैला बना देते हैं, और यह भोजन कई जीव जंतु ग्रहण करते हैं, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। उदाहरण:- क्लॉस्ट्रीडियम बोटूनिलियम
  2. कुछ जीवाणु विभिन्न प्रकार के पौधों में रोग उत्पन्न कर देते हैं, जिससे फसल उत्पादन बहुत कम हो जाता है तथा वनस्पतियाँ नष्ट हो जाती हैं। आलू में पाए जाने वाला शैथिल रोग स्युडोमोनास सोलेनिसियेरिस नामक जीवाणु के द्वारा फैलता है।
  3. जेन्थोमोनास सीट्री नामक जीवाणु से नींबू का कैंकर रोग होता है और नीबू का उत्पादन प्रभावित होता है। कोरीनी बैक्टीरियम ट्रीटिकी नामक जीवाणु गेहूँ का टुंडा रोग उत्पन्न करने के लिए उत्तरदाई माना जाता है, इससे गेंहूँ की फसल को काफी हानि होती है। सेब का रोग अग्निनीरजा इर्बीनिया जीवाणु के कारण फैलता है।

कुछ जीवाणु मनुष्यों में घातक रोग फैलाते हैं, जिनका इलाज जल्दी से जल्दी नहीं किया गया तो मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं।

जीवाणु द्वारा मनुष्य में होने वाले रोग Disease caused by bacteria

  1. हैजा रोग (Cholera disease) - हैजा रोग विब्रियो कॉलरी नामक बैक्टीरिया के द्वारा मनुष्य में फैलता है, इस रोग में आँत प्रभावित होती है।
  2. डिप्थीरिया (Diphtheria) - डिप्थीरिया नामक रोग कोरीनोबैक्टीरियम डिप्थीरी नामक जीवाणु के द्वारा फैलता है, तथा स्वास नाल को प्रभावित करता है। 
  3. निमोनिया (Pneumoniae) - निमोनिया रोग अधिकतर छोटे बच्चों में होता है जिसका कारक डिप्लोकोकस न्यूमोनी बैक्टीरिया होता है। यह रोग फेफड़ों को प्रभावित करता है। 
  4. टाइफाइड (Typhoid) - टाइफाइड रोग को मोतीझरा के नाम से भी जानते हैं. यह रोग सालमोनेला टायफी बैक्टीरिया के द्वारा होता है।. इस रोग से आँत प्रभावित होती है। 
  5. तपेदिक (Tuberculosis) - तपेदिक को टीवी रोग के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग का कारक माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस होता है, जो फेफड़ों को प्रभावित करता है।
  6. टिटनेस (Tetanus) - टिटनेस जीवाणु द्वारा फैलने वाला एक रोग है. यह क्लॉस्ट्रीडियम टिटैनी नामक जीवाणु से होता है, तथा तत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। 
  7. कोड या कुष्ठ रोग (Leprosy) - कुष्ठ रोग माइकोबैक्टेरियम लैप्री नामक जीवाणु के द्वारा फैलने वाला रोग है। जिसमें तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।
  8. प्लेग (Plague) - यह रोग बेसिलस पेस्टिस नामक जीवाणु से मनुष्य में फैलता है। प्लेग रोग में पैर के तलवे और कांख प्रभावित होती है। 
  9. काली खांसी (Hooping cough) - काली खांसी भी वह जीवाणु जनित रोग है जो हिमोफिलस परटूसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है, इस रोग में स्वसन तंत्र प्रभावित होता है।

जीवाणुओं के द्वारा जानवरों में भी कई प्रकार के रोग होते हैं, जिनमें से कुछ रोग निम्न प्रकार से हैं:- 

  1. काला पैर रोग (Black leg disease) - काला पैर रोग जानवरों में जीवाणुओं के द्वारा फैलता है, जिसका कारक क्लॉस्ट्रीडियम चावेई नामक जीवाणु होता है।
  2. एंथ्रेक्स रोग (Anthrax disease) - एंथ्रेक्स रोग भेड़ में होता है यह बेसिलस एथ्रेसिस नामक जीवाणु द्वारा फैलता है। इसमें तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।

दोस्तों इस लेख में आपने जीवाणु किसे कहते हैं (What is bacteria) जीवाणु की खोज, जीवाणु के प्रकार तथा जीवाणुओ से होने वाले रोग और उपचार के बारे में पड़ा। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

FAQs for Bacteria

Q.1 बैक्टीरिया को हिंदी में क्या कहते हैं?

Ans. बैक्टीरिया को हिंदी में जीवाणु कहा जाता है।

Q.2. बैक्टीरिया की खोज किसने की थी?

Ans. बैक्टीरिया की खोज एंटोनीवॉन ल्यूवेनहॉक (Antonyvon leuwenhoek) ने अपने सूक्ष्मदर्शी से 16 वीं शताब्दी में की थी।

Q.3. दुनिया का सबसे बड़ा बैक्टीरिया कौन सा है?

Ans. दुनियाँ का सबस बड़ा बैक्टीरिया थियोमार्गरीटा मैग्नीफा (Thiomargarita magnifica) नाम का जीवाणु है जो सफेद फिलामेंट जैसा लगभग 1सेमी लम्बा होता है।

Q.4. सबसे छोटा बैक्टीरिया कौन सा है?

Ans. ऐसिडोबैक्टीरिया दुनियाँ का सबसे छोटा बैक्टीरिया है।

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