उभयचर क्या है, उभयचर वर्ग के लक्षण Characteristics of the amphibian
उभयचर किसे कहते what is amphibian
उभयचर उन जंतुओं का एक समूह है, एक वर्ग है, जो जंतु प्रजनन करने के लिए जल में अंडे देते हैं तथा स्थल पर रहने के लिए भी अनुकूलित होते हैं।
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि जल और थल में रहने के लिए अनुकूलित होने वाले जीव जंतुओं को उभयचर प्राणी कहते है और इन्हे बर्टीब्रेटा उपसंघ के उभयचर वर्ग के अंतर्गत रखा गया है।
उभयचर (Amphibian) संघ कॉर्डेटा (Phylum Chordata) के अंतर्गत आने वाले उपसंघ बर्टीब्रेटा (Bertibrata) के महावर्ग (Superclass) ग्नेथोस्टोमेटा (Gnathostomata) के अंतर्गत आता है।
उभयचर की उत्पत्ति origin of amphibians
उभयचर वर्ग के जीव जंतुओं की उत्पत्ति (Origion) जलीय जंतुओं से हुई है, डिपनोई मछलियों के विकास होने के बाद अन्य जलीय जंतुओं में वायवीय शवशन (Aerobic Respiration) का विकास होने लगा।
जंतुओं में पाए जाने वाले पेक्टोरल और पेल्विक फिन (Pectoral and Pelvic fins) इस प्रकार से विकसित हो गए, जो तैरने (Swimming) के लिए तो सक्षम थे ही साथ में दलदल और कीचड़ में चलने के लिए भी सक्षम हो गए।
कुछ मछलियों में वाताशय से फेफड़ों के समान कार्य करते थे, कुछ लार्वा जैसे टैडपोल (Tadpol) का लारवा इसका प्रमुख लक्षण है।
टेट्रापोड़ भी मछलियों से विकसित होने लगे तथा जलीय जंतु स्थलीय वातावरण में अनुकूलित होने लगे, जिनको एंफीबियंस अर्थात उभयचार नाम दिया गया।
इन जंतुओ को प्राथमिक जलीय जंतु कहा जाता है। क्योंकि इनका परिवर्धन तो जल में ही होता है, और द्वितीय रूप से इन जंतुओं को स्थलीय कहा जाता है, क्योंकि यह स्थल पर भी रहने के लिए सक्षम हो जाते हैं।
उभयचर शब्द का अर्थ क्या है what is the meaning of the word amphibian
उभयचर को इंग्लिश में एंफीबिया Amphibia के नाम से जाना जाता है और एंफीबिया दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है,
Amphi = Both, दोनों या उभय Bios = Life, जीवन इस प्रकार से एंफीबिया का अर्थ 2 स्थान पर जीवन व्यतीत करने वाले प्राणियों से है।
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि उभयचर एंफीबिया बे प्राणी कहे जाते हैं जो दो स्थानों पर निवास करने के लिए अनुकूलित होते हैं,
जैसे कि कुछ जंतु जल और थल में रहते हैं, तो कुछ जंतु नभ में ओर थल में रहते है, उन जंतुओं को उभयचर कहा जाता है।
उभयचर जंतुओं का विकास जलीय जंतुओं से हुआ है, जब जलीय जंतुओं में वायवीय शवसन हेतु क्षमता विकसित हो गई, तो वे स्थलीय वातावरण में रहने के लिए सक्षम हो गए।
उभयचर वर्ग के लक्षण ubhaychar varg ke lakshan
- स्वभाव एवं आवास (Nature and habitat) - उभयचर जंतु अधिकतर जल में ओर थल में रहते है, ये मांसाहारी जंतु होते हैं, जंतुओं का प्रमुख लक्षण होता है यह अपने अंडे जल में देते हैं।
- शारीरिक विभाजन (Physical division)- इन जंतुओं का शरीर सिर और धड़ में विभाजित रहता है, जबकि कुछ जंतुओं में पूछ (Tail) भी पाई जाती है।
- पाद (Foot) - उभयचर वर्ग के प्राणी चार पैर वाले होते हैं, जिनमें आगे के दो पैरों को अग्र पाद और पीछे के पैरों को पश्च पाद कहा जाता है, उनके पैरों में चार या पांच उंगलियाँ होती हैं। यह जंतु उछलने में कूदने में और चलने में सक्षम होते हैं।
- त्वचा (Skin) - इन जंतुओं की त्वचा कोमल होती है और त्वचा पर वर्णक कोशिकाएँ उपस्थित रहती हैं, कुछ जंतुओं में चर्मीय शल्क (skin scales) पाए जाते हैं।
- अन्तः कंकाल (Internal Skeleton) - इन जंतुओं का अंतः कंकाल अस्थिल होता है, करोटी में दो ऑक्सीपिटल (Occipital) पाए जाते हैं, जबकि वयस्कों में स्थाई नोटोकॉर्ड (Notochord) नहीं होता।
- पाचन तंत्र (Digestive System) - जंतुओं में छोटी आहार नाल (Alimentary canal) होती है, और अंत में जाकर अवस्कार मैं खुलती है। इन जंतुओं का मुख (Mouth) बड़ा जीभ बाहि:सारी होती है।
- श्वसन तंत्र (Respiratory system) - इन प्राणियों में स्वसन अंग मुख्यतः फेफड़े (Lungs) होते हैं, इसके अलावा नम त्वचा के द्वारा भी श्वसन क्रिया (Respiration) होती है। इन प्राणियों की लारवा अवस्था (Larvel Stage) में, गिल्स (Gils) भी पाए जाते हैं।
- परिसंचरण तंत्र (Circulatory system) - उभयचर प्राणियों का हृदय 3 कोष्ठीय होता है। इनका हृदय तो आलिंद और एक नीले से मिलकर बना होता है। उभयचर प्राणियों के रक्त में लाल रक्त कणिका बड़ी केंद्रक युक्त होती है।
- शारीरिक तापमान (Body tempreture)- यह जंतु असमतापीय होते हैं। इनके शरीर का तापक्रम वातावरण के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।
- उत्सर्जी अंग (Excretory organs) - उभयचर वर्ग के प्राणियों के उत्सर्जी अंग एक जोड़ी वृक्क होते है। यह वृक्क मीजोनेफ्रिक प्रकार के होते हैं, यह जंतु यूरियोटेलिक (ureotelic) होते हैं, क्योंकि जंतुओं का उत्सर्जी पदार्थ यूरिया (Urea) होता है।
- तंत्रिका तंत्र (Nervous system) - इन जंतु में तंत्रिका तंत्र में कपाल तंत्रिका 10 जोड़ी होती है, जबकि घराण पिंड अल्पविकसित प्रकार के तथा सेरीबेलम विकसित प्रकार का होता है।
- संवेदी अंग (Sensory organ)- इनके संवेदी अंग के रूप में करण में एक विशेष प्रकार की संरचना होती है, जिसे कोलूमेला कहते हैं।
- प्रजनन तंत्र (Reproduction system) - यह जंतु एकलिंगी होते हैं, इन प्राणियों में मैथुन अंग नहीं पाए जाते, अंडे कवच रहित होते हैं, जिसके ऊपर जिलेटिन (Gelatin) का आवरण रहता है इन प्राणियों में अप्रत्यक्ष परिवर्धन पाया जाता है, जबकि टैडपोल लार्वा (Tadpol larva) युक्त होता है।
उभयचर वर्ग का वर्गीकरण classification of amphibian
उभयचर वर्ग को सामान लक्षणों के आधार पर तो सब क्लास में बांटा गया है।
1 उपवर्ग - एप्सिडोस्पॉनडायली (Apsidospondially)
सामान्य लक्षण :-
- इस उपवर्ग के अंतर्गत आने वाले सभी प्रकार के जंतु क्रोसोप्टेरीजीयन (Chropterygian) पूर्वजता को प्रदर्शित करते है।
- इन जंतुओ के कशेरुका का सेन्ट्रम उपास्थि, और अस्थि ब्लॉक से निर्मित होता है।
इस उपवर्ग को दो सुपर आर्डर में बांटा गया है
1. सुपर आर्डर (Super Order) - लेबिरिन्थोडॉशिया (Labyrinthodysia) - इसके अंतर्गत पांच ऑर्डर हैं।
2. सुपर आर्डर (Super Order) - सैलिएटा/ एन्युरा (Salieta / Anura)- इसके अंतर्गत 3 आर्डर आते हैं।
2. उपवर्ग - लेपोस्पॉनडायली (Lepospondyly)
सामान्य लक्षण:-
- ये छोटे आकार के जंतु होते हैं, जो कोर्बोनिफिरेस काल (Carboniferous period) में अत्यधिक विकसित थे।
- कशेरुका एक ही अस्थि लेपोस्पॉन्डाइलस (Lepospondylus) प्रकार की होती है।
- इन जंतुओं में पसलियाँ अधर में तो कशेरुकाओं के बीच बाले भाग से अंतराकशेरुकीस्थिति में जुड़ी होती हैं।
- उप वर्ग की अधिकांश प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं, तथा कुछ ज्ञात प्राजातियों को 6 ऑर्डर में विभाजित किया गया है।
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