कबीर दास जी का जीवन परिचय kabir das ji ka jeevan parichay
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है इस लेख कबीर दास जी का जीवन परिचय (kabir das ji ka jeevan parichay) दोस्तों यहाँ पर आप कबीरदास का साहित्यिक परिचय जान पायेंगे।
जो कई कक्षाओं में अक्सर पूँछा जाता है। तो आइये शुरू करते है, यह लेख कबीर दास जी का जीवन परिचय कबीरदास का साहित्यिक परिचय:-
कबीर दास का जीवन परिचय kabir das ji ka jeevan parichay
कबीर दास के बारे में कौन नहीं जानता है? कियोकि कबीर दास एक महान संत समाज सुधार के साथ ही एक सुप्रसिद्ध कवि भी थे। वह निर्गुण भक्ति काव्य धारा के प्रमुख कवि माने जाते थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को माध्यम बनाकर अपने कविताओं तथा दोहों के माध्यम से समाज सुधार समाज में फैला पाखंड अनीति अत्याचार पर तीक्षण कटाक्ष किया है।
ऐसे महान संत समाज सुधारक तथा कवि के जन्म के बारे में कोई भी ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं। पुरानी मान्यताओं तथा इतिहासकारों के अनुसार बताया जाता है, कि महाकवि कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। बताया जाता है, कि एक विधवा ब्राह्मणी ने कबीरदास को जन्म दिया था और लोक लाज के कारण उसने कबीर दास जी का त्याग काशी में लहरतारा नमक तालाब के निकट कर दिया था।
तभी वहां से जुलाहा दम्पति नीरू और नीमा गुजर रहे थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी उन्होंने बालक कबीर को अपनी गोद में उठाया और यहां वहां देखा कि इसके माता-पिता कहीं आसपास तो नहीं है, किंतु वहां पर उन्हें कोई नहीं मिला तो वह कबीर दास को अपने घर अपने पुत्र के रूप में ले आए। कबीर दास जी बचपन से ही प्रखर बुद्धि के थे और श्री राम भक्त थे,
किंतु वह रामानंद को अपना गुरु बनाना चाहते थे, उस समय रामानंद नीची जाति के लोगों को अपना शिष्य नहीं बनाते थे। तब कबीर दास जी छोटे बच्चे के रूप में वे उस घाट पर लेट गए जहाँ पर रामानंद नहाने जाया करते थे तब गुरु रामानंद का पैर बालक कबीर दास को लग गया तो रामानंद ने उन्हें उठाया और उन्हें श्रीराम नाम जपने का आदेश दिया इस प्रकार से कबीर दास जी के गुरु रामानंद कहलाए।
कबीर दास जी अपने माता-पिता की तरह घर पर जुलाहे का काम करने लगे और उनका विवाह एक सुन्दर कन्या से हुआ, जिससे उनको कमाल और कमाली पुत्र पुत्री प्राप्त हुए। कबीरदास ने समाज से आडंबर मूर्ति पूजा पाखंड तथा अत्याचार का जमकर विरोध किया, तथा अपने दोहों और काव्य के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को जागरूक किया।
कबीर दास की रचनाएँ Composition of Kabeerdas
कबीर दास जी ने समाज के सभी वर्गों को जागरूक करने के लिए तथा समाज में अनीति आडंबर मूर्ति पूजा पाखंड को हटाने के लिए और भाईचारा प्रेम को बढ़ाने के लिए अपने दोहों के माध्यम से प्रयास किए हैं उनकी महत्वपूर्ण रचनाएं निम्न प्रकार से हैं :-
कबीर साखी: कबीर दास जी के इस ग्रंथ में कबीर दास जी साखियों के माध्यम से सुरता (आत्मा) को आत्म और परमात्म ज्ञान समझाया करते थे।
कबीर बीजक: इस ग्रंथ में कबीर की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने बीजक नाम से सन् 1464 में किया, जो पद्द में है और उसके तीन भाग किए गए हैं:-
- रमैनी :- रमैनी का अर्थ होता है "रामायण" जो ब्रजभाषा और पूर्वी बोली में है यह मुख्य रूप से दोहा और चौपाई छंद से रचित है।
- सबद :- इसका अर्थ होता है "शब्द" और यह भी ब्रजभाषा और पूर्वी बोली में रचित गेय पद है।
- साखी :- साखी का अर्थ होता है "साक्षी" जो राजस्थानी पंजाबी और पूर्वी बोली के साथ दोहा छंद में रचित है।
कबीर दास जी की भाषा Kabeerdas ki Bhasha
कबीर दास जी पढ़े लिखे नहीं थे। उन्होंने मन से ही स्वामी रामानंद को अपना गुरु मान लिया था। सभी धर्म के साधु संतो की संगति के कारण उनकी भाषा सधुक्कड़ी हो गई है, जिसको पंच मेल खिचड़ी भी कहा जाता है, जिसमें राजस्थानी पंजाबी हरियाणवी खड़ी बोली के साथ ही अवधी और ब्रजभाषा का
प्रयोग देखने को मिलता है, जबकि कबीर दास जी की रचनाओं का लेखन उनके शिष्यों ने किया है, इसलिए उनकी रचनाओं में रमैनी और सबद में ब्रजभाषा की अधिकता है तो साखी में राजस्थानी व पंजाबी की अधिकता देखने को मिलती है।
कबीर दास का भाव पक्ष Kabeerdas ka Bhav Paksha
कबीर जी निर्गुण निराकार ब्रह्म के उपासक थे, जबकि हिन्दी काव्य में रहस्यवाद का जन्मदाता कबीर दास को ही कहा जाता है। कबीर के काव्य में उनके दोहो में आत्मा और परमात्मा के संबंधोेें की स्पष्ट व्याख्या देखने को मिलती है। इन्होंने अपने काव्य में परमात्मा को प्रियतम एवं आत्मा को प्रेयसी के रूप में अभिव्यक्ति किया है, जबकि विरह की पीड़ा
तो कहीं-कहीं अनूठे रूपकों द्वारा अपने गूढ़ भावों की अभिव्यक्ति प्रदान की है। कबीर दास जी ने अपने काव्य के माध्यम से समाज में फैले पाखंड आडंबर का घोर विरोध किया है तथा भाईचारा प्रेम विश्व बंधुत्व को बढ़ावा दिया।
कबीर दास का कला पक्ष Kabeerdas ka kala paksha
कबीर दास जी की भाषा पंचमेल खिचड़ी है, जिसको सधुक्कड़ी भाषा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि साधु संतो के साथ रहकर उन्होंने यह भाषा अर्जित की थी। उनकी रचनाओं में अवधी,
ब्रजभाषा के साथ ही पंजाबी, हरियाणवी, खड़ी बोली के शब्दों की झलक दिखाई देती है, वहीं उन्होंने अपने काव्य में दोहा शैली के साथ ही गेय पद शैली शांत रस श्रृंगार रस का अद्भुत सामंजस्य स्थापित किया है।
कबीर दास का साहित्य में स्थान Kabeerdas ka sahitya Mai Sthan
कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के अंतर्गत निर्गुण काव्य धारा के एक महान कवि होने के साथ ही समाज सुधारक और संत रहे हैं। उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से संपूर्ण जगत के सभी वर्ग के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया है। ऐसे महान कवि समाज सुधारक तथा संत को हिंदी साहित्य में महान स्थान प्राप्त है।
दोस्तों यहाँ पर आपने कबीर दास जी का जीवन परिचय (kabir das ji ka jeevan parichay) कबीर दास का साहित्यिक परिचय पड़ा आशा करता हूं आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
इसे भी पढ़े:-
0 टिप्पणियाँ