केशवदास का जीवन परिचय keshavdas ka Jivan Parichay
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के हमारे इस लेख केशवदास का जीवन परिचय (keshavdas ka Jivan Parichay) में।
दोस्तों यहां पर आप केशव दास का जीवन परिचय केशव का साहित्यिक परिचय जान पाएंगे, जो कई परीक्षाओं में अक्सर पूछा जाता है, तो दोस्तों शुरू करते हैं आज का यह लेख के केशवदास का जीवन परिचय:-
केशवदास का जीवन परिचय keshavdas ka Jivan Parichay
भारतवर्ष में कई महान विभूतियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने भारतवर्ष की एकता अखंडता के लिए अद्भुत कार्य किये है उन्होने भारतवर्ष की विरासत सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का बड़ा ही मनमोहक और वीरोंचित वर्णन किया है उन्हीं महान विभूतियों में से एक है हमारे आचार्य केशवदास जिनका जन्म 1555 ई. में ओरछा में जिझोतियाँ ब्रम्हाण कुल में हुआ था उनके पिता का नाम काशीनाथ था जो ओरछा महाराज के बहुत सम्मानपात्र व्यक्ति थे,
जबकि उनकी माता का नाम रामरती था, किन्तु कुछ विद्वानों में माता जी को लेकर मतभेद है। कवि केशवदास का जीवन बड़ी ही विलासिता पूर्वक बीता उन्होंने संस्कृत बुंदेली ब्रज कई भाषाओ में महारत हांसिल की। केशवदास महाराज इंद्रजीत के दरबारी कवि के साथ ही मंत्री और गुरु भी थे। केशवदास अपने अंतिम छड़ो में गंगा तट पर रहने लगे और वही पर 1618 ईस्वी में उनका देहावसान हो गया।
केशवदास की रचनाएँ Composition of keshavdas
महाकवि केशवदास ने ओरछा नरेश के दरबार में रहते हुए कई रचनाएँ लिखी है जिनमे कुछ प्रमुख निम्न प्रकार से है :-
- रसिकप्रिया :- रसिकप्रिया केशवदास की एक प्रोढ़ रचना है, जो काव्यशास्त्र ग्रन्थ है और इसमें रस प्रवृति के साथ ही काव्यशात्र दोषों के लक्षण उदाहरण है।
- कविप्रिया :- केशवदास ने काव्यशिक्षा संबंधी ग्रंथ की रचना की है, जो इन्द्रजीतसिंह की रक्षिता और केशव की शिष्या प्रवीणराय के लिये प्रस्तुत किया गया था।
- रामचंद्रिका :- रामचन्द्रिका केशवदास का सर्वाधिक प्रसिद्ध महाकाव्य है, जिसकी रचना में प्रसन्नराघव, हनुमन्नाटक, कादंबरी आदि कई ग्रंथो से कुछ भाग लिए गए है।
- रतनबावनी :- इस ग्रन्थ में मधुकरशाह के पुत्र रतनसेन, वीरसिंह चरित में इन्द्रजीतसिंह के अनुज वीरसिंह तथा जहाँगीर जसचंद्रिका के वीरता साहस का वर्णन किया गया है।
इसके अलावा केशव ने विज्ञानगीता और जहाँगीर जसचंद्रिका वीर सिंह देव चरित्र जैसी कई प्रसिद्ध रचनाएं हिंदी साहित्य को प्रदान की है।
केशवदास की काव्यगत विशेषताएँ Keshav Das Ji ki kavygat visheshtaen
कवि केशवदास उद्धट दंडी जैसे अलंकार संप्रदाय के आचार्य का अनुसरण करते थे इसीलिए कवि केशवदास जी भी अलंकार संप्रदाय के आचार्य कवि माने जाते हैं।
कवि केशवदास ने अलंकारों के दो भेद माने हैं साधारण और विशिष्ट उनके काव्य में अधिक अलंकारों का प्रयोग करने से वर्णनो की भरमार होती है, वहीं चहल पहल साजो सज्जा में इनका मन अधिक लगता है।
- राजाओं की वीरता का वर्णन :- कवि केशवदास महाराजाओं के आश्रय कवि थे इसलिए उन्होंने अपने राजाओं के यशगान और वीरताओं का वर्णन किया है, जिनमे वीर सिंह देव चरित और जहांगीर जस चंद्रिका उनकी ऐसी ही रचनाएं है।
- प्रक्रति चित्रण :- केशव दास जी महाराजाओं के आश्रय में रहा करते थे इसीलिए वह है महाराजाओं की शौर्य वीर साज साज वेशभूषा पर ही पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया, उनके काम में प्रकृति की कल्पनाएं आरुचिकर और असंगत जान पड़ती हैं, ऐसा मन पड़ता है कि उनके अलंकारों के बोझ तले प्रकृति अपना सौंदर्य को बैठी।
- संवाद योजना :- कवि केशवदास दरबारी कवि होने के साथ ही मंत्री के पद पर भी आसीन थे इसलिए उनकी संवाद योजना बहुत ही मंजी हुई और रोचक थी। वे वाकपटूता में इतने निपुण थे, कि हर कोई उनकी बड़ी और इस कला की ओर आकर्षित हो जाता था, जनक-विश्वामित्र संवाद, लव-कुश संवाद, सीता-हनुमान संवाद इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
केशव दास की भाषा शैली keshavdas ki Bhasha Shaili
भाषा :- केशव दास जी संस्कृत के एक महान विद्वान थे किंतु उन्होंने अपने काव्य में बुंदेली भाषा का अधिक प्रयोग किया है किंतु कहीं-कहीं पर संस्कृत भाषा के तत्सम शब्दों के साथ ही संस्कृत की विभक्तियां भी देखने को मिल जाती हैं। उनके काव्य में बुंदेली भाषा के साथ ही अवधी भाषा के शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है। किंतु कहीं-कहीं पर अवधि के साथ ही संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग से उनके काव्य में किलिष्टता देखने को मिल जाती है।
शैली :- केशव जी ने जो शैली अपने काव्य में प्रयोग की है उसमें उनके व्यक्तित्व की झलक साफ-साफ दिखाई देती है। वैसे केशव की शैली प्रौढ़ और गंभीर है, जो श्रृंगार और वीर रसो के प्रयोग से अधिक सुसज्जित हो जाती है। जबकि छंद रचना में कहीं-कहीं पर विविधता दिखाई देती है, साधारण तौर पर उन्होंने कविता और सवैया छंद का अधिक प्रयोग किया है। केशव दास जी को अलंकारों से सर्वाधिक प्रेम था इसलिए उनके हर काम में अलंकार सबसे अधिक प्रयोग में ले गए हैं।
केशव दास का साहित्य में स्थान keshavdas ka Sahitya Mein sthan
केशव दास जी हिंदी साहित्य के प्रथम आचार्य माने जाते हैं और उनके काव्य की सजीवता को देखकर इनको कठिन काव्य का प्रेत रामचंद्र शुक्ल के द्वारा कहा गया है, केशव जी एक महान कवि थे इसलिए और और तुलसी के बाद का स्थान आता है और कहा भी गया है,
सूर सूर तुलसी ससी उडुगन केशवदास।
अबके कवि खद्योत सम जह-तह करत प्रकाश।।
दोस्तों यहाँ पर आपने केशवदास का जीवन परिचय (keshavdas ka Jivan Parichay) केशव का साहित्यिक परिचय पड़ा आशा करता हूँ आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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