रहीमदास का जीवन परिचय Raheemdas ka jivan parichay
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दोस्तों यहाँ पर आप रहीम का साहित्यिक परिचय के अंतगर्त ही रहीम की प्रमुख रचनाएँ रहीम दास का भावपक्ष, रहीम दास का का कला पक्ष, रहीम दास की भाषा शैली भी जान पाएंगे तो आइये शुरू करते है, यह लेख रहीमदास का जीवन परिचय :-
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रहीमदास का जीवन परिचय Raheemdas ka jivan parichay
दोस्तों दुनिया में कई महान विभूतियाँ जन्म लेती है, जो अपने कर्मो के द्वारा इस संसार में अपना नाम अमर कर देती है। ऐसी ही एक महान विभूति है मध्यकालीन मुस्लिम समाज के रहीम दास जी जिनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था।
अब्दुर्रहीम खानखाना एक महान कवि होने के साथ ही प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ सेनापति बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान व्यक्ति थे। अब्दुर्रहीम खानखाना का जन्म 17 दिसम्बर 1556 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता का नाम बैरम खान था जो हुमायु के खास मित्र सलाहकार और सेनापति थे, तथा अकबर के संरक्षक थे।
रहीमदास की माँ का नाम सुल्ताना बैगम था, जो जमाल खान की बेटी थी। बैरम खान की मृत्यु के पश्चात् अकबर ने रहीम को अपने पुत्र की तरह पाला तथा अपनी धाय माँ की पुत्री माहबानो संग उनका विवाह करा दिया। रहीम दास जी ने सेनापति रहते हुए कई जीत दर्ज की जिसमें गुजरात, कुम्भलनेर, उदयपुर प्रमुख है।
रहीम दास जी को उनकी उपलब्धियों के कारण उपाधि 'मीरअर्ज और खान-ए-खाना की उपाधि से नवाजा गया। रहीमदास का देहांत 1627 ई में हुआ था तथा उनकी समाधि दिल्ली में उनकी पत्नी की समाधि के पास बनाई गयी थी।
रहीमदास की रचनाएँ Composition of Raheemdas
रहीम दास जी ने अकबर बादशाह के दरबार में रहते हुए कई नीति के दोहे रचित किये और समाज में शांति प्रेम आदि का सन्देश दिया। रहीमदास जी ने रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि के द्वारा समाज को जाग्रत करने का सन्देश दिया। उनकी रचनाएँ तथा दोहे आज भी मानव समाज की भलाई तथा पथ प्रदर्शक बने हुए है।
रहीम की भाषा शैली Raheem ki Bhasha shaili
रहीमदास जी ने अपने दोहो में सरल स्वभाव तथा प्रवाहपूर्ण पूर्ण भाषा अवधी और ब्रज का प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में श्रृंगार शांत और हास्य रस का अद्भुत प्रयोग देखने को मिलता है,
जबकि दोहा सोरठा कवित्त जैसे छंदो के प्रयोग से उनकी रचनाएँ अधिक सुसज्जित हो जाती है। रहीमदास जी की भाषा अत्यंत सरल है, जिसमें गुंढ से गुंढ रहस्यो को आसानी से समझा जाता है।
उनके काव्य में नीति प्रेम श्रृंगार का समावेश ब्रज भाषा के साथ रूपक उतप्रेक्षा अलंकारों के प्रयोग से अत्यंत व्यवहारिक स्पष्ट और सरल हो जाता है।
रहीमदास जी ने अपने काव्य में कहीं कहीं तद्भव शब्दों का प्रयोग अवधी भाषा के ग्रामीण शब्दों का प्रयोग तथा मुक्तक शैली के प्रयोग से अपनी रचनाओं को अद्भुत सरल और बोधगम्य बना दिया है।
रहीमदास का भावपक्ष Raheemdas ka bhavpaksha
रहीमदास के पिता की तरह वह भी नेक दिल इंसान थे उनमें भक्ति त्याग तथा ईमानदारी के गुण का समावेश था जबकि दया उनके लिए सर्वोपरि माना जाता है। रहीम ने समाज में कई विसंगतियों को देखा है और उनको आत्माभूत किया है,
जिससे ओतप्रोत होकर उन्होंने नीति के दोहे रचित किये जो मनुष्य को सही जीने की राह दिखाते है और आज यह दोहे जन-साधारण की जिह्वा पर रहते हैं, कियोकि अनुभूति की सत्यता के कारण ही इनके दोहों को जनसाधारण द्वारा बात-बात में प्रयुक्त किया जाता है।
रहीमदास का कलापक्ष Raheemdas ka kalapaksha
रहीमदास ने अपने काव्य को अवधी और ब्रज भाषा से अलंकृत किया है, जो सराहनीय कार्य है। उनके काव्य में श्रृंगार और शांत रस की प्रधानता अधिक है किन्तु कुछ जगह हास्य रस भी दिखाई देता है। रूपक उतप्रेक्षा जैसे अलंकारों के माध्यम से जीवन की सत्यता उन्होंने जनमानस तक पहुँचाने की चेष्टा की है। रहीम दास जी की सभी रचनाओं में दोहा कवित्त छंद जबकि सोरठा और सवाईया छंद का भी प्रयोग हुआ है।
रहीमदास का साहित्य में स्थान Raheemdas ka sahitya me sthan
रहीम दास भक्तिकाल के कवि है जो एक महान सेनापति विद्धान होने के साथ ही परम दयालु प्रकृति के थे। मानव जीवन की अनियमितताओ तथा उनकी प्रवृतियों को देखकर उन्होंने नीति के दोहे रचे है, जो मानव जीवन में एक पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाते है, ऐसे महान कवि को युगों युगों तक श्रेष्ठ स्थान प्राप्त होगा।
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